यूं ही नहीं महलों की दीवारें अकाश चूम रही मिल के पत्थरों का साथ चाहिए यूं ही नहीं दामन में फूल खिल रहे गुलदस्ते में मेहनत से फूल उगाने वाला चाहिए यूं ही नहीं अरमानों की रंग मिल जाते हर रंग को सजाने वाला चाहिए यूं ही नहीं खुशबू से सराबोर कलियां खिली आंचल में कांटों से जख्म खाना आना चाहिए यूं ही नहीं वक्त हुआ मेहरबान हर वक्त बेवक्त की कसौटी पर खरा उतरना आना चाहिए मंजिलें दूर नहीं है बाकी बस उम्मीदों के दिए राहों में जलाने वाला होना चाहिए यूं ही नहीं महलों की दीवारें खड़ी होती अकाश चूम रही मिल के पत्थरों का साथ चाहिए
मिल के पत्थरों का साथ चाहिए